एक लकीर की बात है
एक लकीर का साथ है।
मोडो तो दिखती ऐसी,
पलटो तो दिखती वैसी।
चेहरे पर दिखती
तो लगती मुस्कान।
आंखों के आगे
देती उम्र को स्थान।
सीमा पर खींची
तो ज़मीन हुई पराई।
दिलो में खींची
तो दुश्मनी जन्म ले पाई।
ज़िन्दगी की दौड़ में
शुरुवात दिखाती।
अंत का अंक भी
वोही ले आती।
किस्मत अजीब
लकीर ने पाई।
देहलीज़ पर रख दी
तो मर्यादा कहलाई।
लकीर ही जोड़ती है,
लकीर ही तोड़ती है।
किस्मत है लिखती,
लिखी को मोडती है।
नई पहचान है देती
पुराणी पहचान मिटती।
विधाता का शास्त्र है
इंसान को नचाती।
है तो वोह इतनी
मतलब इसके अनेक।
समझ पाए ज्यो इसको
वोही तो है वोह एक।
Dated: 21st January, 2004
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